यह पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005) के आधार पर तैयार किए गए पाठ्यक्रम पर आधारित है। यह पारंपरिक भाषा-शिक्षण की कई सीमाओं से आगे जाती है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की नयी रूपरेखा भाषा को विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सबसे समृद्ध संसाधन मानते हुए उसे पाठ्यक्रम के हर विषय से जोड़कर देखती है। इस नाते पाठ्यसामग्री का चयन और अभ्यासों में विद्यार्थी के भाषायी विकास की समग्रता को ध्यान में रखा गया है। कई प्रश्न-अभ्यास भाषा शिक्षण की परिचित परिधि से बाहर जाकर प्रकृति, समाज, विज्ञान, इतिहास आदि में विद्यार्थी की जिज्ञासा को नए आयाम देते हैं। पाठ केंद्रित प्रश्नों को क्रमशः विस्तार देते हुए पाठ के आसपास के ज्ञान-क्षेत्रों को भी दूसरे प्रश्न-समूहों में साथ रखने का प्रयास किया गया है। भाषा की बात करते हुए ऐसे शब्दों और प्रयोगों पर विद्यार्थी का ध्यान दिलाया गया है जिन्हें समाज की जीवंतता को साहित्यिक कृतियों में समेटते हुए साहित्यकार अपनी कृति में रखना आवश्यक समझते हैं और अकसर ऐसे आंचलिक शब्द और वाक्य प्रयोग आज के शहरी जीवन में अपेक्षाकृत कम सुनाई पड़ते हैं।