Vaishveekrut Sansar Mein Nagarikata: वैश्वीकृत संसार में नागरिकता
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- Synopsis
- पिछले कुछ दशकों में सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में नागरिकता की धारणा एक केन्द्रीय विषय के रूप में उभरी हैं। नागरिकता का एक आदर्शात्मक धारणा एवम् एक सामाजिक-राजनीतिक तथ्य दोनों स्तरों पर गम्भीरता से अध्ययन किया जा रहा है। क्योंकि राज्य का प्राथमिक सम्बध जनता से है, अतः राजनीति का पहला विषय उन नियमों का चयन करना होता है जो इन सम्बधों को संचालित करेगें-अर्थात् सामाजिक नियमन के लिए कुछ ऐसे मूल नियमों का अस्तित्व अनिवार्य है जो यह निश्चित करें कि कौन किसी राज्य विशेष का सदस्य माना जायेगा, यह सदस्यता किस तरह प्राप्त की जा सकती है, शासकों के कर्त्तव्य क्या हैं अथवा व्यक्ति के क्या अधिकार हैं आदि। ये सभी प्रश्न नागरिकता की प्रकृति के अध्ययन तथा इसका अधिकार, स्वतन्त्रता, समानता तथा न्याय के साथ सम्बन्ध से जुड़े हुये हैं। टी.एच. मार्शल के सिद्धान्त का अनुसरण करते हुये नागरिकता का आधुनिक उदारवादी सिद्धान्त कानूनी समानता तथा राजनीतिक भागेदारी के अतिरिक्त आर्थिक एवम् सामाजिक अधिकारों पर भी बल देता है। परन्तु पिछले कुछ दशकों से नागरिक एवम् राजनीतिक अधिकारों के पहले चरण तथा सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के दूसरे चरण का एक तीसरे चरण तक विस्तार किया जा रहा है जिसमें कई अधिकार शामिल है जैसे पर्यावरण अधिकार, आदिवासी अथवा मूल-निवासी अधिकार, एक राष्ट्र-राज्य के अन्दर बह-सांस्कृतिक तथा अल्पसख्यंक समूह अधिकार तथा प्रजातान्त्रिक अधिकारों के स्थान पर मानवीय अधिकारों को प्राथमिकता आदि। वर्तमान पुस्तक नागरिकता से सम्बन्धित इन समकालीन विषयों की एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
- Copyright:
- 2017
Book Details
- Book Quality:
- Excellent
- Book Size:
- 189 Pages
- ISBN-13:
- 9788185060637
- Publisher:
- Geetanjali Publishing House
- Date of Addition:
- 08/30/21
- Copyrighted By:
- R. C. Varmani
- Adult content:
- No
- Language:
- Hindi
- Has Image Descriptions:
- Yes
- Categories:
- Nonfiction
- Submitted By:
- Bookshare Staff
- Usage Restrictions:
- This is a copyrighted book.