Kara Kunti ke: कारा कुन्ती की
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- Synopsis
- 'कारा कुन्ती की' यह नाटक को जिन द्वंद्वात्मक मनःस्थितियों एवं विकट परिस्थितियों में लिखा गया, वे वास्तव में आत्यांतिक रूप से अकथनीय हैं। परिणामतः नाटक अनेक विचारधाराओं की टकराहट का कोलाज बन गया है। पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध के अंतर्गत कई दृश्यान्तरों में निबद्ध यह नाटक अपनी स्वाभाविक प्रकृति में धीरे-धीरे खुलता है। यह खुलना वैसे ही है जैसे एक बीज का शनै:-शनैः वृक्ष हो जाना। भाव तथा कार्य दोनों एक साथ गति पकड़ते हैं। इस तरह आद्यन्त नाटक अपनी आंतरिक एव बाह्य संचालन प्रक्रिया में सक्रिय बना रहा है। सात्विक अभिनय पर अधिक जोर देते हुए भी अभिनय के अन्य रूपात्मक बाह्य प्रकारों के लिए पर्याप्त स्पेस है। नाटक का आन्तरिक पक्ष उसके बाह्य पक्ष का आधार होता है और नाटक का बाह्य पक्ष आन्तरिक अनुभूति का विस्तार होता है। इस प्रकार नाट्यानुभूति और रंगसज्जा दोनों अन्योन्याश्रित होते हैं। प्रस्तुत नाटक में मैनें इसका समुचित निर्वाह करने का प्रयास किया है।
- Copyright:
- 2017
Book Details
- Book Quality:
- Excellent
- Book Size:
- 98 Pages
- ISBN-13:
- 9789382543145
- Publisher:
- Isha Gyandeep
- Date of Addition:
- 01/11/22
- Copyrighted By:
- Kusumlata Malik
- Adult content:
- No
- Language:
- Hindi
- Has Image Descriptions:
- Yes
- Categories:
- Literature and Fiction
- Submitted By:
- Bookshare Staff
- Usage Restrictions:
- This is a copyrighted book.