Vyaktitva Ka Vighatan: व्यक्तित्व का विघटन
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- Synopsis
- प्रस्तुत पुस्तक "व्यक्तित्व का विघटन" मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखा हुआ साहत्यिक निबन्ध शिवदानसिंह चौहान और श्रीमती विजय चौहानजीने हिंदी में अनुवाद किया है। गोर्की के जिन पाँच महत्वपूर्ण साहित्य-सम्बन्धी निबन्धों का अनुवाद हम यहाँ हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं, उनके बारे में कुछ भी कहकर हम व्यर्थ ही गोर्की की बात को संक्षिप्त रूप में दोहराना आवश्यक नहीं समझते। निबन्ध भारत में ही नहीं, बल्कि सारे संसार के साहित्यों में भी प्रगतिशील आन्दोलन के लिए पिछले तीस-पैंतीस साल से प्रेरणा और मार्ग-दर्शन का काम करते आये हैं। आजकल जब शीत-युद्ध के परिणामस्वरूप सभी साहित्यिक मूल्यों का जैसे अवमूल्यन हो गया दीखता है, और कुछ उत्साही प्रगतिशील आलोचक भी इस रौ में बहकर और साहित्य में 'अहम्-केन्द्रित व्यक्तिवाद' का दर्शन अपनाकर मात्र रूसवादी प्रतिमानों को आज के 'सन्दर्भो' का तकाजा बताते हुए उन्हें 'नये प्रतिमानों के नाम से प्रतिष्ठित करने की कोशिश कर रहे हैं, हमारे पाठकों के लिए गोर्की के इन निबन्धों की रेलिवेन्स और भी अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि सोवियत क्रान्ति और प्रथम महायुद्ध के पहले के रूस में भी ऐसे ही मात्र रूपवादी प्रतिमानों को 'उस युग के सन्दर्भो' का तकाज़ा बताया गया था। गोर्की ने अपने निबन्धों में उन सन्दर्भो और मनःस्थितियों का जो गहरा विश्लेषण किया है, वह हमारे लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
- Copyright:
- 1969
Book Details
- Book Quality:
- Excellent
- Book Size:
- 273 Pages
- Publisher:
- Rajkamal Prakashan
- Date of Addition:
- 06/23/22
- Copyrighted By:
- Rajkamal Prakashan
- Adult content:
- No
- Language:
- Hindi
- Has Image Descriptions:
- Yes
- Categories:
- Literature and Fiction
- Submitted By:
- Bookshare Staff
- Usage Restrictions:
- This is a copyrighted book.