Panchali: पाञ्चाली
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- Synopsis
- द्रौपदी, नारी की सशक्त गाथा है। हज़ारों वर्षों से स्त्री, टुकड़ों-टुकड़ों में द्रौपदी को जी रही है... कहीं वह अपमान और लांछना सहती है, तो कहीं पुरुष के भीतर की ऊर्जा बनती है। कहीं त्याग से उसके उत्थान की सीढ़ी बनती है, तो कहीं पुरुष के अहं के आगे विवश हो जाती है। पाँच पुरुषों को वरण करने वाली द्रौपदी, अपने पतियों के कारण कुरु-सभा में अपमानित हुई, उसके उपरांत भी उसने 'वरदान' शब्द में लिपटी दया के माध्यम से उनको दासता से मुक्त करवाया और उनके अस्तित्व, स्वाभिमान और शक्ति की रक्षा के लिए ऊर्जा प्रदान करती वन-वन भटकती रही। पंच-पतियों के प्रति सेवा, भाव, निष्ठा और कर्तव्य-निर्वाह के कारण जहाँ एक ओर सती के आसन पर विराजमान हुई... वहीं पंच-पति वरण के कारण एक युग के पश्चात् भी व्यंग्य, विद्रुप का पात्र बनी रही। विचित्र है उसका जीवन; किन्तु विचित्रता और अंतर्विरोध के बीच वह सदैव विशिष्ट रही। कृष्ण उस युग-पुरुष के लिए किस कन्या के हृदय में आकर्षण नहीं रहा होगा... फिर कृष्णा कैसे अपवाद रहती। नियति ने भी तो नाम को माध्यम बना दिया था। कृष्णा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम और सख्यभाव को कुरु-सभा में अपमान के साथ उद्धृत किया गया, किन्तु उस प्रीति का निर्वाह भी उसी सभा में ही हुआ। जब सारा लौकिक जगत् बहरा हो गया था, तब सैकड़ों कोस दूर, उसी अलौकिक प्रीति ने उसकी पुकार को सुना और उसके सम्मान की रक्षा की। सख्यभाव और निकट हृदय-संबंध का दूसरा उदाहरण इस लौकिक जगत् में अन्यत्र नहीं दिखाई देता है और यही प्रीति पाज्चाली के हृदय की ऊर्जा का स्रोत भी रही।
- Copyright:
- 2019
Book Details
- Book Quality:
- Excellent
- Book Size:
- 274 Pages
- ISBN-13:
- 9789387390713
- Publisher:
- Redgrab Books Pvt. Ltd.
- Date of Addition:
- 02/26/23
- Copyrighted By:
- Shachi Mishra
- Adult content:
- No
- Language:
- Hindi
- Has Image Descriptions:
- Yes
- Categories:
- Literature and Fiction, Religion and Spirituality
- Submitted By:
- Bookshare Staff
- Usage Restrictions:
- This is a copyrighted book.