Dharti Ab Bhi Ghoom Rahi Hai: धरती अब भी घूम रही है
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- Synopsis
- इस उपन्यास की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो अपने जीवन में अनेक सामाजिक और व्यक्तिगत संघर्षों से गुजरता है। उपन्यास का मुख्य पात्र अपने सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति निष्ठावान है, लेकिन समाज में फैली असमानताओं, भ्रष्टाचार, और अन्याय के कारण उसे निरंतर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वह व्यक्ति समाज के बदलते मूल्यों और नैतिकता के पतन से निराश है, लेकिन फिर भी वह अपने आदर्शों से समझौता नहीं करता। उपन्यास का शीर्षक "धरती अब भी घूम रही है" यह दर्शाता है कि समय के साथ समाज में बहुत कुछ बदल सकता है, लेकिन कुछ मौलिक सत्य और मूल्य हमेशा बने रहते हैं। उपन्यास के माध्यम से विष्णु प्रभाकर ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, सच्चाई और न्याय की ताकत हमेशा बनी रहती है। यह उपन्यास एक प्रकार से समाज का आईना है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज के दौर में हम किस दिशा में जा रहे हैं और हमें अपनी नैतिकता और मूल्यों के प्रति कितने जागरूक रहने की आवश्यकता है।
- Copyright:
- 2012
Book Details
- Book Quality:
- Excellent
- Book Size:
- 133 Pages
- ISBN-13:
- 9788170289999
- Publisher:
- Rajpal and sons
- Date of Addition:
- 08/28/24
- Copyrighted By:
- Vishnu Prabhakar
- Adult content:
- No
- Language:
- Hindi
- Has Image Descriptions:
- Yes
- Categories:
- Literature and Fiction
- Submitted By:
- Bookshare Staff
- Usage Restrictions:
- This is a copyrighted book.