हिन्द स्वराज महात्मा गांधी द्वारा 1909 में लिखित एक महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें उन्होंने भारत के स्वराज (स्व-शासन) की अवधारणा और आधुनिक सभ्यता की आलोचना प्रस्तुत की है। पुस्तक संवाद शैली में लिखी गई है, जहाँ पाठक और संपादक के बीच चर्चा होती है। गांधीजी तर्क देते हैं कि सच्चा स्वराज केवल ब्रिटिश शासन से मुक्त होने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भरता, नैतिक शक्ति और पश्चिमी भौतिकवाद के त्याग में निहित है। वे कानून, चिकित्सा और रेल प्रणाली की आलोचना करते हुए कहते हैं कि ये भारतीय समाज को कमजोर कर रहे हैं। गांधीजी अहिंसा (अप्रतिरोध) और सत्याग्रह (सत्य के प्रति आग्रह) को स्वतंत्रता प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं। वे पारंपरिक ग्राम-आधारित अर्थव्यवस्था, आत्मनिर्भर समुदायों और नैतिक शासन की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि भारत अंग्रेजों की सैन्य शक्ति से नहीं, बल्कि भारतीयों के सहयोग से गुलाम बना, और इसी सहयोग को समाप्त कर आत्मनिर्भरता के माध्यम से स्वराज पाया जा सकता है। यह पुस्तक गांधीजी के स्वतंत्रता संग्राम की दार्शनिक नींव रखती है, जो केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण पर भी केंद्रित है।